सामूहिक विवाह सम्मेलन और समाजोत्थान

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विवाह केवल एक पवित्र बंधन ही नहीं, अपितु दो आत्माओं का मिलन होता है. वर्तमान समय में मिलन कराने की जो परम्परा स्थापित है उसकी विवेचना करने की जरुरत है. दहेज प्रथा के कारण योग्य वर-वधु मिलना कठिन हो रहा है. विवाह आयोजनों में दहेज, दिखावा और अपव्यव की समस्या भयाभव रूप में सामने है. धनी वर्ग सम्बन्ध तय करने से लेकर विवाह के पश्चात तक अनाप सनाप अपव्यय कर अपनी धन शक्ति का ओछा प्रदर्शन कर समाज के सामने जटिल समस्याएं उत्पन्न कर रहा है. विवाह समारोहों में चढाई के दौरान प्राय: बेंड की भडकीली धुनों पर परिवार की बहु बेटियों और मदहोश युवकों का नाचने गाने और वैवाहिक परम्पराओं को फ़िल्मी अंदाज में निर्वहन करने जैसी बुराइयां अपनी सभ्यता को शिकंजे में कसती जा रहीं हैं.

अन्य समाजों की तरह हमारे समाज में भी फेली हुईं कुरीतियाँ में दहेज प्रथा दानव की तरह है जो अथक प्रयाशों के उपरांत भी अपना असर नहीं छोड़ पा रही है. आज कमरतोड़ महगाई में सामान्य आय वर्ग के व्यक्ति के लिए शादी करना उसके ऋणी होने का कारण बन जाती है. ज्यादातर परिवार इस मुसीबत से बच नहीं पातें तथा कालांतर तक कर्ज चुकाने में जीवन व्यर्थ करते है. हमारे समाज के लिए सामूहिक विवाह एक आदर्श विवाह पद्धति और एक सटीक समाधान है इस भयाभव समस्या से निपटने के लिए. इसकी कार्यविधि भी परम्परागत विवाह समारोह जैसी होती है. अंतर केवल सामूहिकता का होता है. समाज की ओर से नव-विवाहितों को उपहार भेंट किये जाते है और प्रत्येक कन्या को समाज ऐसे विदा करता है जैसे माता-पिता और भाई-बंधु करते है.

सामूहिक विवाह को एक श्रेष्ठ चलन की भूमिका में यदि देखें तो इसमे समाज में अमीर गरीब की मानसिकता से जो हीन भावना उत्पन्न होती है, उससे मुक्ति मिल सकती है. अलग- अलग विवाह के तामझाम में अनर्गल खर्चे कम हो सकते हैं. इस प्रकार हुयी आर्थिक बचत हमारे समाज के विकास में सहायक है. जीवनसाथी ढूडने में जो समय बर्बाद होता है, वह सभी लोंगों के एक साथ इकठ्ठा होने से बच सकता है. दूसरी ओर जो परिवार साधन हीन हैं उनके बच्चों के विवाह भी सामूहिक प्रयास से संपन्न हो जाते हैं. इससे न केवल सदभाव और भाईचारा बढता है, बल्कि समाज के उत्थान के लिए प्रयासों की चर्चा एक ही मंच पर हो जाती है. अर्थात सामूहिक विवाह सम्मेलन की शुरुआत समाज में जागृति लाने और समाज को आगे बढ़ाने की दिशा में एक श्रेष्ठ पहल साबित हो रही है.

प्राचीन समय में स्वयंवर करने की प्रथा थी जिनमे कन्या अपने लिए अनेक योग्य युवकों में से अपने लिए वर का वरण करती थी. आज के युग में वैवाहिक परिचय सम्मेलन उसी की परिश्रकृत परम्परा है. इनमें बहुत से युवक-युवती अपने अभिवावकों के साथ उपस्थित होकर अपनी रूचि, योग्यता आदि के अनुरूप अपने जीवन साथी का चयन करते है. इससे न केवल माता-पिता को अपने पुत्र-पुत्रियों के लिए जीवन साथी तलाशने में समय, धन और शक्ति के अपव्यय के बिना सफलता मिलती है, अपितु उनके बच्चो को अनेक प्रत्ताशियो में से सही चयन करने का एक अवसर मिलता है.

जैसा कि कहा गया है “संघे शक्ति कलयुगे”. किसी भी समाज में संगठन का अत्यधिक महत्त्व होता है. बिना संगठन के समाजोत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती है. इसके लिए सामूहिक भावना आवश्यक है. सामूहिक विवाह इसी दिशा में एक श्रेष्ठ पहल है. वर्तमान युग में जहां समाज में आर्थिक सम्रद्धि, प्रगति और आपसी सद्भाव की आवश्यकता है वह सामूहिक सम्मेलनों के चलन पर आधार और आकार ले सकती है. आदि गौड़ समाज आज हर तरह से पिछडा हुआ है. ऐसे में सामूहिक सम्मेलन हमें आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्रों में आगे बढने का एक मंच प्रदान करता है.

प्रतिष्ठित परिवार के लोगों की मान्यता जब सामूहिक विवाहों को मिलेगी और सभी अमीर गरीब इसमे सम्मलित होंगे, सभी सम्बन्ध परिचय सम्मेलन के माध्यम से होने लगेंगे और प्रत्येक विवाह सामूहिक सम्मेलन से होगा तब ये सब बुराइयां शनैः शनैः समाप्त हो जायेंगी. इसी संधर्भ में समाज के प्रतिष्ठित वर्ग से अपेक्षा की जाती है कि वे स्वयं भविष्य में आयोजित सामूहिक विवाह सम्मेलन में अपने परिवार के योग्य लडके लड़कियों का विवाह करने का संकल्प लेकर सामूहिक विवाह सम्मेलन की परम्परा को वर्तमान की अनिवार्यता का दर्जा दिलाने का प्रयाश करें. यदि हम सब सामूहिक सदभावना से इनके आयोजन को सफल बनाना चाहते हैं तो इसके लिए अमीर-गरीब सभी को जुडना चाहिए. जो उपदेश, प्रेरणा या शिक्षा हम समाज को देते हैं उस पर हम स्वयं भी अमल करें. यदि समाज को श्रेष्ठ बनाने का सपना सच करना है तो समाज के प्रत्येक व्यक्ति के अंतःकरण में श्रेष्ठता को प्रवेश पाने दो, ह्रदय कपाट खुले रखो ताकि समाज उच्चस्तरीय स्थान प्राप्त कर सके. आने वाली पीढ़ियाँ हम सब के अनुकरण से ही उज्ज्वल समाज का निर्माण कर सकेंगी.